Avdhoot713

मनुष्य के स्वभाव भिन्न-भिन्न होते हैं ।अतः न तो किसी की निंदा करता हूं और न स्तुति ही। मैं केवल इनका परम कल्याण और परमात्मा से एकता चाहता हूं।42


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